अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी आई ए दुनियाभर मे अपने षड्यंत्रों एवं दूसरे देशों मे हस्तक्षेप करके वहां अस्थिरता पैदा करने के लिये जानी जाती है । सी आई ए के इस भूमिका के बारे मे दुनिया के लगभग सभी देशों को पता है । U.S.S.R के विघटन से लेकर ,पाकिस्तान मे इमरान खान की सत्ता से बेदखली की घटना के साथ हाल ही मे बांग्लादेश मे शेख हसीना का तख्तापलट इन सारी घटनाओं के पीछे अप्रत्यक्ष रुप से सी आई ए की संलिप्तता ही पायी जाती है । भारत तो लम्बे समय से सी आई ए के निशाने पर रहा है । और भारत मे भी सी आई ए द्वारा किए गये अनेकों षडयंत्रों के खुलासे हो चुके हैं । फिलहाल उन सभी का वर्णन आज का विषय नहीं है ।आज चर्चा होगी अरविंद केजरीवाल और सी आई ए के अंतरंग सम्बन्धों का । अगर आज यह बात कही जाय कि अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री सी आई ए के कहने पर बनाया है तो इस पर चौंकना लाजिमी हैं आज चर्चा इसी तरह की घटनाओं पर हो र ही है । दर असल सी आई ए का काम करने का तरीका ही कुछ इस तरह का है कि उसके फन्दे मे लोग आसानी से फंस जाते हैं । सी आई ए की पहली पसंद है केजरीवाल ः देश मे 2014 मे भाजपा की सरकार एवं नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही कांग्रेस के प्रदर्शन से सी आई ए की समझ मे आ गया था कि देश की राजनीति मे अब कांग्रेस का प्रभाव नगण्य है । इस लिए सी आई ए को नये चेहरे की तलाश थी जो राजनीतिक पकड रखता हो और इसके लिये उसने अरविन्द केजरीवाल को अपने जाल मे फंसाने का निर्णय लिया । अमेरिका की एक स्वयं सेवी संस्था है “फोर्ड फाउंडेशन ” जिसकी स्थापना फोर्ड दम्पति ने की थी । परन्तु फोर्ड दम्पति की मृत्यु के बाद कालांतर मे इस संस्था को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी आई ए ने अपने हाथ मे ले लिया । ध्यान रहे फोर्ड फाउंडेशन पर वृस्तित चर्चा आज का विषय नहीं है इस लिये मात्र संदर्भ के लिये ही उसकी चर्चा की जा रही है । मानवीय कल्याण, मानव सहायता के लिए स्थापित संस्था फोर्ड फाउंडेशन शीत युद्घ के समय एक अलग ही युद्ध लड रही थी और दुनिया मे अपनी दादागिरी कायम करने के लिए के .जी.बी रूस की खुफिया एजेंसी एवं अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी आई ए आमने सामने थी । और इसमे फोर्ड फाउंडेशन उसका काम आसान कर देता । वास्तव मे देश के वामपंथी विचारक , बुद्धिजीवी प्रोफेसर ,.पत्रकार आदि समाज का यह वर्ग फोर्ड फाउंडेशन से जुडा ही होता था देश कोई भी हो । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देशों मे सत्ता का गठन एवं उसे कठपुतली की तरह चलाने के सी आई ए के मंसूबों के लिये फोर्ड फाउंडेशन एक महत्वपूर्ण यंत्र था ।सन 1991 मे सोवियत संघ के विघटन के बाद शीत युद्ध समाप्त हो चुका था उसके बाद फोर्ड फाउंडेशन के काम करने का तरीका भी बदल गया ।जिस देश मे इनका मिशन चलता वहां की संस्थाओं को आर्थिक सहायता फोर्ड के माध्यम से ही दिया जाता है । भारत मे प्रवेश ः यह एक विडंबना है कि इस्ट इंडिया कम्पनी की तर्ज पर आजादी के बाद फोर्ड फाउंडेशन की विदेशी शाखा सर्वप्रथम भारत मे ही खुला । और इसके बारे मे तात्कालिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु समझ नहीं पाये और धीरे धीरे वामपंथ की आड मे फाउंडेशन ने देश की संस्थाओं मे अपनी पकड़ मजबूत कर ली और हर विवादित विषयों को वामपंथ के सिर पर मढता रहा । इसके द्वारा उन सारे कानून मे दखल देकर उसे अमेरिकी हितों को ध्यान मे रख कर बनवाया गया । भारत का पूरा इतिहास वामपंथ के नाम पर फोर्ड के इच्छानुसार लिखा गया और शिक्षा व्यवस्था भी उसी के अनुसार संचालित होती रही । कहा जा सकता है कि 2014 तक अप्रत्यक्ष रूप से सरकार किसी की भी हो सरकार का संचालन फोर्ड फाउंडेशन के अनुसार चलती थी । देश के उद्योगपति, पत्रकार ,बुद्धिजीवी, वरिष्ठ अधिकारियों मे इसकदर इसकी पैठ थी कि इसकी कल्पना भी भयभीत कर देने वाली है । समय समय पर के.जी.बी भारत को इस खतरे से आगाह करता रहा पर नेतृत्व मे दूरदर्शीता की कमी के कारण इस ओर ध्यान नहीं दिया गया । 2014 मे जब परिस्थितियां बदली और भाजपा की दक्षिणपंथी सरकार आयी और नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो पहली बार फोर्ड फाउंडेशन को संदेह के घेरे मे लिया गया और उसकी जांच की बात सामने आई । दूसरी तरफ कांग्रेस की अन्दरूनी कलह और बिखरती राजनीति के कारण फोर्ड का मोहभंग हो गया । उसके बाद फोर्ड ने अपना पूरा ध्यान अरविंद केजरीवाल की तरफ केन्द्रित किया । कारण था अरविंद केजरीवाल की टीम पहले से ही इस संस्था से जुड़ी थी । केजरीवाल की अपनी संस्था ” कबीर” को भी फोर्ड द्वारा सबसे ज्यादा आर्थिक सहयोग किया गया था । अमेरिकी महिला स्मीरीटीली एक रिसर्च के सिलसिले मे भारत आती है और केजरीवाल की संस्था कबीर से जुडती है और उसी के माध्यम से फोर्ड द्वारा आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराया जाता था और केजरीवाल की सरकार फोर्ड की मंशा के अनुरूप ही चलती रही । एक रिटायर्ड रा के अधिकारी ने तो खुलासा किया कि दिल्ली मे आतिशी क़ो मुख्यमंत्री भी फोर्ड के इशारे पर ही बनाया गया । परन्तु अब फोर्ड फाउंडेशन पर सरकार की पैनी नजर है । सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि विदेशी संस्थाओं को अपने सारे लेन देन का हिसाब सरकार के साथ साझा करना होगा ।बस इसी बात से इन संस्थाओं की बौखलाहट बढ गई है ।और विदेशी धरती से देश के जयचंदों के साथ मिलकर भाजपा सरकार एवं नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं । अब भारत सरकार एवं इस जैसी देश विरोधी संस्थाओं से टकराव के अगर सार्थक और सकारात्मक परिणाम निकलते हैं तो यह देश के लिए बहुत शुभ होगा ।