सनातन धर्म मे पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों मे साल के 16 दिनो को अपने दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान के लिए निर्धारित किया गया है ।इन दिनो मे हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म एवं तर्पण इत्यादि के द्वारा उन्हें प्रशन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और अपना लौकिक और परलौकिक जीवन को सुखमय बना सकते हैं । आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों के लिए समर्पित है इस पखवाड़े मे पितरों को दान पुण्य ,श्राद्ध कर्म ,करके प्रशन्न किया जाता है और पितृदोष ,एवं अन्य समस्यायो से मुक्ति के लिए प्रार्थना किया जाता है । 15 दिन की इस अवधि को पितृ पक्ष कहते हैं । गरूण पुराण मे वर्णित है कि पितृ पक्ष मे पित्र गण पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं और प्रेम सहित अर्पित प्रसाद को ग्रहण करते हैं तथा प्रसन्न होकर आशिर्वाद देते हैं । सनातन के अलावा अन्य देशों एवं समुदाय मे भी किसी न किसी रूप मे इससे कुछ मिलती जुलती परंपरा मिलती है । श्राद्ध कर्म एवं पिण्डदान ः गरूण पुराण के अनुसार व्यक्ति के मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा का प्रेत रूप मे यम लोक की यात्रा शुरू होती है और उस यात्रा के दौरान उसकी संतान द्वारा अर्पित किया हुआ भोजन एवं जल से आत्मा तृप्त होती है उसे काफी संबल मिलता है ।तृप्त होकर वह अपने संतान को आशिर्वाद देती है । व्यक्ति के मृत्युयोपरान्त उसका श्राद्ध कर्म और तर्पण अवश्य करना चाहिए इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है । इस लिये प्रत्येक संतान का कर्तव्य है पितृ पक्ष मे पिण्डदान एवं श्राद्ध कर्म के द्वारा पितरों से क्षमा मांगते हुये श्रद्धा के साथ श्राद्ध कर्म करें और पुर्वजों से आशिर्वाद प्राप्त करें । इससे पितरों को प्रसन्नता होती है और संतान का कल्याण होता है । गरूण पुराण के अनुसार मोक्षस्थली गया मे फाल्गु नदी के तट पर पूर्वजों के निमित्त पिण्डदान करने से 108 कुल और सात पिढियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है । गया मे पिण्डदान देने से ऐसे पुर्वजों एवं मृतात्माओं का उद्धार हो जाता है जिसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होती । अतः पितृ पक्ष मे पिण्डदान , तर्पण , एवं श्राद्ध कर्म करके पितृ दोष एवं पितृऋण से मुक्ति के साथ पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन सुखमय बनाया जा सकता है ।