हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों एवं वेदों पुराणों मे गुरु की अपार महिमा बताया गया है गुरू हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाता है तथा सत्य और सन्मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन करता है । गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा , सम्मान, एवं कृतग्यता व्यक्त करने का पर्व है गुरू पूर्णिमा ।प्रति वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप मे मनाया जाता है उस दिन गुरू की पूजा अर्चना तथा श्रद्धा व्यक्त किये जाने की परंपरा है । गुरु द्वारा जिस तरह हमें शिक्षा एवं आध्यात्मिक मार्ग के द्वारा जीवन की सफलता के लिए मार्गदर्शन किया जाता है यह दुनिया मे सनातन धर्म के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलता । गुरु के महिमा का वर्णन कबीर दास जी ने भी कुछ इस तरह से किया है –
गुरू गोविंद दोउ खडे , का के लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो , गोविंद दियो बताय इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे धर्म तथा भारतीय समाज मे गुरू का क्या स्थान है ।इस दोहे मे कबीर दास ने स्पष्ट किया है कि अगर गुरू और भगवान एक साथ हों तो सर्व प्रथम गुरू का चरण स्पर्श करना चाहिए क्योंकि गुरु साथ हैं तो ईस्वर का साक्षात्कार करा सकते है । इसी लिये हमारे समाज मे गुरु का पूजनीय स्थान है। गुरू पूर्णिमा गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है ।शास्त्रों मे कहा गया है कि इसी दिन वेदव्यास ने वेदों की रचना की थी इसी लिये इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक कोई भी मनुष्य अज्ञान रूपी अधंकार में भटकता हुआ माया मोह के बंधनों में बंधा रहता है, उसे मोक्ष (मोष) नहीं मिलता. गुरु के बिना उसे सत्य और असत्य के भेद का पता नहीं चलता, उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं होता. भारत के अलावा नेेपाल तथा भूटान मे भी गुरू पूर्ण्णिमा का पर्व मनाया जाता है नेपाल मे इसे शिक्षक दिवस के रूप मे मनाने की परंपरा है । हमारे शास्त्रों मे यह भी वर्णित है कि इसी दिन भगवान शिव ने सप्तर्षियों को योग की शिक्षा दी थी । बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे गौतम बुद्ध से जोड कर देखते हैंं , उनके अनुसार वाराणसी के निकट सारनाथ मे बुद्ध ने पहला उपदेश दिया था उसके बाद ही बौद्ध धर्म दुनिया मे फै
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