2024 लोकसभा के चुनाव संपन्न हो गये और जनता पार्टी के गठबंधन एन डी ए को 303 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिल गया जबकि विपक्षी गठबंधन I N D I A को कुल 234 सीटों से ही संतोष करना पडा । हालांकि एन डी ए को बहुमत तो मिल गया परन्तु भारतीय जनता पार्टी अपने बदौलत 240 सीटों के साथ बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गयीं वही दूसरी तरफ विपक्षी दलो की सभी सीटें मिलाकर भी 234 सीटों तक ही सीमित रह गयीं । विपक्षी गठबंधन मे सबसे बडी पार्टी कांग्रेस सैकडा तक भी नहीं पहुंच पायी बावजूद इसके कांग्रेस पिछली बार की अपनी 55 सीटों को बढाकर 99 सीटों तक पहुंचा कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही है ।
भारतीय राजनीति का ऐसा विद्रुप रूप कभी देखने को नहीं मिला कि विपक्ष को अपनी हार पर कोई अफसोस नहीं पर भाजपा की सीटें कम हो गयीं इसबात की प्रसन्नता है । इसके अतिरिक्त विपक्षी दलों के प्रयास को असफल करते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गये पर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल इस बात की खुशियां मना रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी पहले जैसे ताकतवर नहीं रहे बल्कि गठबंधन के सहयोग से सरकार का गठन और प्रधानमंत्री पद हासिल कर लिये हैं ।दूसरी बात कि 234सदस्यों वाले विपक्ष के पास इतना संख्या बल है जिससे वह सरकार के नाक मे दम कर सकता है विपक्ष पूरी तरह उत्साहित है सकारात्मकता की दिशा मे आगे बढने के लिये नहीं बल्कि नकारात्मक क्रिया कलापों से संसदीय इतिहास मे एक बार फिर काला अध्याय लिखने के लिए इसकी बानगी अभी संसद की कार्यवाही के दौरान देखने को मिली।
INDIA गठबंधन की कांग्रेस सबसे बडी पार्टी है और इस चुनाव मे कांग्रेस ने अपनी सीटें बढाकर 55 से 99 तक कर ली है इसलिए इसबार संसद मे कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष चुनने का अवसर मिल गया है । कांग्रेस अपनी परंपरा के अनुसार गांधी नेहरू परिवार को पार्टी से उपर मानती है या यूं कहे तो उन्हें ही पार्टी मानती है इसी परंपरा को आगे बढाते हुये राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष चुन लिया गया । नेता प्रतिपक्ष चुने जाने के बाद से ही राहुल गांधी वह काम करने लगे संसदीय परंपरा के विरुद्ध था और संसदीय इतिहास मे अबसे पहले कभी नहीं हुआ ।
संसद की परंपरा रही है कि लोकसभा मे स्पीकर का कभी चुनाव नहीं हुआ बल्कि स्पीकर सर्वसम्मति से चुना जाता है चाहे वह व्यक्ति किसी भी पार्टी से हो स्पीकर चुने जाने के बाद वह किसी दल का न होकर निष्पक्ष होकर लोकसभा का संचालन करता है ।साथ ही आजादी के बाद से ही अमूमन सत्ता पक्ष द्वारा चुने गये सदस्य को ही सभी दल समर्थन करते रहे हैं परन्तु इस बार राहुल गांधी संसदीय मर्यादा को ताक पर रख कर अपना प्रत्याशी उतार कर चुनाव की परिस्थिति पैदा कर दी, हांलाकि पर्याप्त संख्या बल न होने के कारण उन्हे मुंह की खानी पडी परन्तु संसदीय परंपरा को तार तार जरुर कर दिया ।दूसरी परंपरा यह है कि नयी संसद की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होता है राष्ट्रपति दोनों सदनों को एक साथ सम्बोधित करते हैं और अपने सम्बोधन मे वर्तमान सरकार की आगामी कार्ययोजना एवं देश को मजबूत बनाने की सरकार की संकल्पना एवं दृष्टि प्रस्तुत करते हैँ । राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है । धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अड गये और दूसरे विषय पर चर्चा के लिए जिद करने दर स्पीकर ने उन्हें लाख समझाया कि यह संसदीय परंपरा के विरुद्ध है तथा अलोकतांत्रिक है परन्तु राहुल नहीं माने ।
हद तो तब हो गयी जब अपने पहले सम्बोधन मे राहुल गांधी ने हिन्दू धर्म पर कटाक्ष करते हुये उन्हें हिंसक कह दिया जिससे पूरे देश मे उबाल आ गया । राहुल गांधी एक अपरिपक्व राजनेता की तरह अनाप सनाप बोलते रहे और लोकतांत्रिक मर्यादा को लहूलुहान करते रहे । उसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्बोधन के दौरान चीखते चिल्लाते हुये संसद मे अराजकता फैलाते हुये तथा विपक्ष के सदस्यों को उकसाते हुये दिखे । ऐसा गैर जिम्मेदार नेता प्रतिपक्ष तथा दिशाविहीन विपक्ष देश ने पहली बार देखा ।राहुल गांधी चाहते थे प्रधानमंत्री मोदी संसद मे अपनी बात न रख पाये ,उन्हें भय था कि अगर प्रधानमंत्री बोलेंगे तो इसका जो संदेश देश मे जायेगा उससे उनका कद और बढ जायेगा ।
दरअसल राहुल गांधी की समस्या यह है कि वह इस देश को अपनी जागीर समझते है उन्हें लगता है कि इस देश का नेतृत्व उनके परिवार के अलावा और कोई नही कर सकता ।2014 से नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही उन्होंने नरेंद्र मोदी क़ो सत्ता बाहर करने के लिए तमाम षडयंत्र करते रहे हैं विदेशों मे भी देश के विरूद्व झूठे व भ्रामक प्रचार कर के देश की छवि यखराब करने मे लगे हुये हैं ।उन्हें यह बर्दाश्त ही नहीं है की गांधी परिवार से इतर कोई व्यक्ति देश चला रहा है और उसे लगातार तीसरी बार जनता ने यह मौका दिया है । राहुल गांधी के पास एक स्वर्णिम अवसर था वह अपने आचरण से परिपक्व राजनेता की छवि प्रस्तुत कर सकते थे जिससे देश मे भी उनके गंभीर और परिपक्व राजनेता की छवि की स्वीकार्यता होती।.परन्तु अपनी फितरत के अनुसार राहुल गांधी संसद मे अराजकता एवं.अलोकतांत्रिक तरीके से ब्यवधान ही उत्पन्न करेंगे यही उनका एजेंडा