रामनवमी पर बंगाल की हिंसा भले ही सांप्रदायिक हिंसा के रुप मे देखा जा रहा हो पर इसके पीछे का मुख्य कारण ध्रुवीकरण का प्रयास ही है ।बंगाल मे यह प्रयोग नया नहीं है बंगाल की सत्तारूढ पार्टी तृणमूल कांग्रेस हमेशा एक संप्रदाय को अपना सुरक्षित वोट बैंक मानती रही है, इसके लिए तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी रोहिंग्याओं के बंगलादेश से भारत मे घुसपैठ के बाद संरक्षण देने से भी गुरेज नहीं करती । यही कारण है कि देश मे सबसे ज्यादा बंगलादेशी घुसपैठिए पश्चिम बंगाल मे ही हैं इसका स्पष्ट प्रमाण है कि केन्द्र सरकार द्वारा जब भी NRCऔर CAA को लागू करने की बात की जाती है तो ममता बनर्जी सबसे अधिक विरोध करते हुए बंगाल मे लागू नहीं करने की बात करती हैं। समय समय पर इस तरह की हिंसा का समर्थन तथा स्पष्ट रूप से हिंदुओं का विरोध करके तुष्टिकरण के खेल खेलती रहतीं हैं । देश अभी चुनाव के रंग मे डूबा हुआ है राजनेता बेचैन हैं और मतदाताओं को लुभाने के लिये कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहते । भाजपा की बंगाल मे मजबूत उपस्थिति से ममता बनर्जी डरी हुयीं हैं , वैसे चुनाव के दौरान बंगाल मे हिंसा कोई नयी बात नहीं है परन्तु इस बार भाजपा की बढती सीटों की सम्भावना तृणमूल कांग्रेस के लिए बडी चुनौती की तरह है इसके लिए ममता के पास हिंसा और अराजकता के अलावा अन्य विकल्प भी नहीं हैं अपने वोट बैंक को साधने और संतुष्ट करने के लिये अभी और हिंसात्मक घटनाओं को समर्थन दे सकती हैं । बंगाल मे भाजपा के बढते कद से सबसे ज्यादा नुकसान ममता बनर्जी को ही होगा क्योंकि कांग्रेस वहां हाशिये पर है और वामपंथी दलों की जमीन ही नहीं बची है इसलिए ममता के साथ भाजपा की सीधी टक्कर है अतः भाजपा भी चाहती है कि ममता हिंदुओं के विरुद्ध अराजकता का माहौल बनावें और हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हो । अतः यह समझना मुश्किल नही हैं कि जितना सांप्रदायिक झडपें होगी दोनों दल लाभान्वित होते रहेंगे । यहां एक बात समझना होगा कि पूरे देश मे एक ऐसा मुस्लिम वर्ग भी है जो प्रधानमंत्री की विभिन्न योजनाओं का लाभार्थी है और भाजपा के पक्ष मे मतदान के लिये तैयार है । इसे तमाम विपक्षी पार्टियां हजम नहीं कर पा रही हैं इस लिए अनुमान है कि चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण का यह खेल चलता रहेगा , यह भी स्मरण रहे कि यह भाजपा की पसंदीदा पिच है और इस पर वह सहज रूप से बैटिंग करती है । अब गेंद चुनाव आयोग के पाले मे है ,बंगाल मे शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराना एक बडी जिम्मेदारी है और उम्मीद ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि चुनाव आयोग इसमें अवश्य सफल होगा । परन्तु ध्रुवीकरण के खेल मे हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती राजनीतिक दलों को भी इस तरह के प्रयासों से बचना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र के लिए यह शुभ नही है । इसमें देश की छवि खराब होती है ।