देश मे चुनावी घमासान अपने चरम पर पहुंच चुका है अगले 19 अप्रैल को प्रथम चरण का मतदान होना है इसके लिए सभी राजनीतिक दल जनता को लुभाने के सारे हथकंडे अपना रहे हैँ एक तरफ सत्तारूढ दल भाजपा अबकी बार 400 पार का नारा दे रही हैं वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के नेता भाजपा को उखाड़ फेंकने का संकल्प दोहरा रहे हैं । जनता इन सभी राजनीतिक दलों के स्वांग को चुपचाप देख रही है तथा देश यह भी देख रहा है कि 5 वर्षो तक एक दूसरे को गाली देने वाले नेता आज किस तरह सत्ता के लिए गलबहियां डाल रहे हैं ।परन्तु 21 सदी के एक परिपक्व व सबसे बडे लोकतंत्र के मतदाताओं मे भी चेतना का स्तर अब काफी उंचा हो गया है इसलिए अब जाति धर्म अगडा पिछडा अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का खेल मतदाताओं को कुछ हद तक ही प्रभावित कर पाता है । देश के लिए सुखद यह है कि केन्द्र सरकार ने देश मे जो राष्ट्रवाद की लौ जलाई है वह आज हर देशवासियों के सिर चढ कर बोल रहा है । और यह कहने मे कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि , विदेशों मे देश का मान , राष्ट्रवाद ,और राममंदिर निर्माण , आदि मुद्दों पर ही देश 2024 के इस चुनाव मे मतदान करने जा रहा है ।और यही क ई राजनीतिक दलों की चिंता का कारण भी है ।परन्तु देश का मिजाज न समझने वाले नेता आज भी अपनी उसी रणनीति के तहत मतदाताओं को जाति, और संप्रदाय मे बांट कर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश कर रहे हैं परिणाम स्वरूप सत्ता से स्यवं दूर होते जा रहे हैं । देश की जनता देश मे एक मजबूत सरकार चाहती है मजबूत सरकार मजबूत निर्णय लेती है यही कारण है पिछले एक दशक से देश मे एक मजबूत सरकार होने के कारण ही कुछ मजबूत निर्णय लिये गये । दूसरी बात नेताओं का यह कहना कि हम एक सरकार को हटाने के लिये एकजुट हुए हैं सीधे तौर पर मतदाताओं का अपमान है , अगर किसी दल की देश मे सरकार है तो वह मतदाताओं द्वारा ही चुनी गयीं हैं तथा मतदाता अगर संतुष्ट नहीं होगा तो स्वयं उसे सत्ता से दूर कर देगा उसके लिए राजनेताओं का यह कथन हास्यास्पद ही लगता है । इसके अतिरिक्त नेताओं की विश्वसनीयता भी मतदाताओं को प्रभावित करती है ।प्रत्येक चुनावों की तरह इस चुनाव मे भी प्रत्येक राज़नीतक दलों द्वारा चुनाव घोषणा पत्र जारी किया गया है मतदाताओं को लुभाने के लिए कई वादे किए गये हैं देश यह देख रहा है कि राजनीतिक दलों के वादे सिर्फ वादों के लिये ही होते हैं । इस लिए मतदाताओं को जिस पर वादे पूरे करने का विश्वास होगा उसी घोषणा पत्र पर यकीन करके मतदाता मतदान करेंगे । अतः यह चुनाव राजनीतिक दलों के आगे की दिशा और दशा तय करेगा यह चुनाव इस लिए भी दिलचस्प होगा कि एक दल को सत्ता से दूर करने के लिए असमान विचारधारा वाले सभी दल एक मंच पर आ गये हैं अब मतदाता इस पर कितना यकीन कर पाता है यह तो 4 जून को मतगणना के बाद ही पता चलेगा ।परन्तु इतना तय है कि जनता द्वारा चुनी गई एक मजबूत सरकार को सत्ता से हटाना इतना आसान नहीं होगा ।