भारत के पडोसी एवं मित्र देश नेपाल को चीन पूरी तरह अपने कब्जे मे लेने के लिये लम्बे समय से प्रयासरत है नेपाल मे चीन अपनी मजबूत उपस्थिति को दक्षिण एशिया के प्रवेश द्वार के खुलने जैसा मानता रहा है ।दूसरी तरफ नेपाल चीन के साथ अपने सम्बन्धों को नेपाल भारत संबन्धों के संतुलन के लिए इस्तेमाल करना चाहता है परन्तु नेपाल की कोइ स्पष्ट विदेश नीति न होने के कारण चीन के कुचक्र मे फंसता जा रहा है। हालांकि चीन के साथ नेपाल अपने सम्बन्ध राजा महेन्द्र के शासन काल मे चीन से आधुनिक अस्त्रशस्त्र खरीद के साथ स्पष्ट कर दिया था तथा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कडे प्रतिरोध के बावजूद नेपाल ने यह खरीद की थी। परन्तु भारत के साथ भी उसके सम्बन्ध कमोबेश अच्छे ही बने रहे। चीन का हमेशा से प्रयास रहा है कि नेपाल की भारत पर निर्भरता कमतर किया जा सके। परन्तु दोनों देशों की भौगोलिक संरचना इसमें बाधा बनी रही। भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल को ५३० मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की बात कही जिससे कि वहां चार समन्वयित चेक पोस्ट, ३३ जिलों को जोड़ने वाली १५०० किलोमीटर सड़क और दोनों देशों के मध्य १८४ किमी ब्रोडगेज़ रेलवे लाइन का निर्माण प्रस्तावित है। नेपाल के प्रति भारत की यह उदारता चीन को फूटी आंख नहीं सुहाता । हालांकि नेपाल ने चीन के साथ भी कुछ अहम परियोजनाओं पर समझौते किये हैं जिसमे चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीसिएटिव भी शामिल है। नेपाल ने क ई बार यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि नेपाल का दोनों देशों से अपने सम्बन्ध उनके हितों को ध्यान रखते हुये ही चाहता है। भारत की चिन्ता ः
भारत का नेपाल के साथ खुली सीमा और निर्बाध आवागमन सुरक्षा की दृष्टि से काफी संवेदनशील है और सीमा के निकट चीन की उपस्थित भारत के लिए अति चिंता का विषय है भारत ने नेपाल के साथ अपनी चिंता पहले ही जाहिर कर दी थी ,बावजूद इसके चीन के सहयोग से नेपाल भारत सीमा के निकट लुम्बिनी एयरपोर्ट का निर्माण किया गया जिसका भारत ने कडा प्रतिरोध किया । दूसरा भारतीय सीमा से लगने वाले नेपाल के तराई क्षेत्र मे भारतीय मूल के मधेशी निवास करते हैं जिनकी संख्या नेपाल के कुल आबादी की आधी है और भारत के साथ उनका रोटी बेटी का रिश्ता भी है चीन का हमेशा से प्रयास रहा है इनको भारत के विरोध मे खडा करके भारत की सुरक्षा व्यवस्था को छिन्न भिन्न किया जा सके। भारत के लिये यह चुनौती बनी हुयी है सीमा क्षेत्र के दोनों देशों के अधिकारी प्रत्येक महीने बैठक करके सीमा क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा करते हैं और उत्पन्न समस्याओं का एक दूसरे के सहयोग से निराकरण करते हैं। यह भारत सरकार के विदेश नीति तथा भारत की सोची समझी रणनीति का एक हिस्सा है भारत की चिंता यह भी है कि राजशाही के खात्मे के बाद नेपाल मे सर्वाधिक समय तक वामपंथी विचारधारा वाली सरकारे रही हैं जो चीन के लिए काफी अनुकूल होती हैं । अतः चीन की उपस्थिति भारत को और असहज कर सकती है । भारत द्वारा स्पष्ट और मजबूत विदेश नीति और सफल कूटनीति से ही इस पर पार पाया जा सकता है ।